डॉ. दामोदर राउत का बीजेपी से इस्तीफा, पार्टी में नजरअंदाज किए जाने का दिया हवाला

  • Oct 16, 2019
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भुवनेश्वर,16 अक्टूबरः

ओडिशा के पूर्व मंत्री तथा वरिष्ठ नेता डॉ. दामोदर राउत ने बुधवार को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। डॉ. राउत ने प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बसंत पंडा को अपना त्याग पत्र भेज दिया है। उन्होंने अपने फैसले के पीछे की वजह के रूप में पार्टी द्वारा नजरअंदाज किए जाने का हवाला दिया है। पार्टी हमें कोई दायित्व नहीं दे रही थी। किसी प्रकार की रणनीतिक कार्यक्रम में मुझे शामिल नहीं किया जा रहा था। मुझे लग रहा था भाजपा को शायद मेरी जरूरत नहीं है। इस प्रकार की स्थिति में पार्टी में बने रहना मुझे उचित नहीं लग रहा था। ऐसे में मैंने आज पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। डॉ. राउत ने अपने त्याग पत्र लिखा है कि मुझे पार्टी नेतृत्व से कोई शिकायत नहीं है। मैं पार्टी से इस्तीफा दे रहा हूं क्योंकि मुझे लगता है कि पार्टी को मेरी आवश्यकता नहीं है। उन्होंने कहा कि बुढ़ापे को देखते हुए अब मैं सक्रीय चुनावी राजनीति में भाग नहीं लूंगा। हालांकि  उन्होंने यह भी कहा कि जो लंबे समय से मेरा समर्थन कर रहे हैं उन अपने लोगों के लिए काम करना जारी रखेंगे। राउत ने कहा कि स्वर्गीय बीजू पटनायक के सच्चे और समर्पित अनुयायी के रूप में मैं राज्य और राज्य के लोगों के हित के लिए अपना शेष जीवन समर्पित करूंगा। खबरों के मुताबिक  21 अक्टूबर को होने वाले उपचुनाव के लिए पार्टी के स्टार कैंपेनरों की सूची में उनका नाम नहीं होने से वह काफी दुखी थे। सात बार के विधायक और छह बार के मंत्री रहे डॉ. राउत पिछले आम चुनाव से कुछ महीने पहले ही बीजेडी छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए थे। हालांकि चुनाव प्रचार के दौरान उन्हें काफी बहुत महत्व दिया गया  लेकिन चुनाव के बाद पार्टी की किसी भी गतिविधि या फैसले में उन्हें विश्वास में नहीं लिया जा रहा था। उन्होंने इस बारे में नाराजगी भी जताई थी।

 वहीं, दूसरी राउत के आरोप पर प्रतिक्रिया देते हुए प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बसंत पंडा ने कहा कि हमारी पार्टी में सभी समान हैं, किसी को भी नजरअंदाज नहीं किया गया था। प्रधानमंत्री सहित हर कोई एक नेता होने के साथ-साथ पार्टी का कार्यकर्ता भी है।

 इस बीच, दामोदर के बेटे सांबित राउत ने कहा कि उनके पिता द्वारा भाजपा में शामिल होने का गलत निर्णय था। जब बीजेपी मुश्किल में थी तो उन्होंने मेरे पिता को फोन किया। मैंने तब भी उन्हें रोकने की कोशिश की थी लेकिन उन्होंने मेरी बात नहीं सुनी।

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