नक्सल प्रभावित इलाके के अजय ने भारत को दिलाया स्वर्ण पदक

  • Sep 09, 2018
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भुवनेश्वर, 09 सितम्बर:

ओडिशा के नक्सल प्रभावित क्षेत्र के आदिवासी परिवार में जन्मे अजय कुमार मंधरा ने राज्य को गौरवान्वित करने के साथ देश को प्रथम अंतरराष्ट्रीय खो-खो खेल में स्वर्ण पदक दिलाया है। इंग्लैंड में 1 से 4 सितम्बर के बीच प्रथम अंतरराष्ट्रीय पुरुष खो-खो खेल का आयोजन किया गया था।

अजय कुमार मंधरा ओडिशा के नक्सल प्रभावित मालकानगिरी जिले के बोंडा का रहने वाले हैं। ओडिशा में बोंडा एक ऐसा आदिवासी इलाका है जहां रहने वाले लोगों के पास पहनने के लिए कपड़े और खाने के लिए पर्याप्त खाना नहीं मिलता है। अजय के पिता एक बुनकर हैं और मां गृहिणी है। अजय घर का सबसे बड़ा बेटा है और वह अपनी जिम्मेदारियों के साथ आगे की पढ़ाई पूरी कर रहा है।

अजय ने अपनी पढ़ाई को पूरा करने के लिए कलिंग इंस्ट्यूट ऑफ सोशल साइंस (कीस) में दाखिला लिया। कीस आदिवासी छात्रों को मुफ्त में शिक्षा के साथ उनके रहने का प्रबंधन करता है। पढ़ाई के साथ-साथ अजय की खो-खो में भी  अजय की काफी रुची रही। वह राष्ट्रीय स्तर पर खेल में बेहतर प्रदर्शन दिखाकर भारतीय खो खो खिलाड़ी के रुप में अपना स्थान पक्का किया।

इंग्लैंड में 1 से 4 सितम्बर के दौरान भारत और इंग्लैंड के बीच प्रथम अंतरराष्ट्रीय पुरुष खो-खो मैच खेल गया। भारत ने इंग्लैंड को खो-खो खेल में हरा कर विजेता बना। अजय ने इंग्लैंड के खिलाफ बेहतरीन प्रदर्शन दिखा कर प्रथम अंतरराष्ट्रीय पुरुष खो-खो खेल में स्वर्ण पदक अपने नाम किया।

इंग्लैंड में भारत का झंडा लहराकर अजय ने 07 सितम्बर को ओडिशा वापस आया। अजय का स्वागत करने के लिए बीजू अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा पर हजारों की भीड़ जुटी। सैकड़ों की संख्या में आदिवासी छात्रों ने उसे गोद में उठकर उसे बधाई देते हुए हौसले को बुलंद किया।

अजय ने खबरइस्ट के संवाददाता के साथ विशेष बातचीत में कहा कि मैं स्वर्ण पदक जीत कर बहुत ही खुश हूं। मेरे मम्मी-पापा मेरी सफलता से काफी खुश है। मैं उनके सपनों को साकार करुंगा।

अजय के कोच कालंदी चरण राउत ने कहा कि सुबह और शाम लगातार प्रतिदिन 2-2 घंटे का प्रशिक्षण दिया जाता है। अजय किसी भी प्रतिक्रिया को बहुत ही जल्द ग्रहण करता है। वह कुशलता के साथ खेल को अंजाम देता है। इंग्लैंड में उसने स्वर्ण पदक हासिल किया है और आने वाले दिनों में हम उसे विश्व कप खो-खो के लिए तैयार कर रहे हैं।

इन दिनों अजय आदिवासी युवाओं के साथ देश के युवाओँ के लिए आर्दश बन चुका है। अजय ने असंभव को संभव कर दिखाया है।

 

 

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