राज्य में गर्भवती महिलाओँ को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा देने के लिए सरकार की ओर से विभिन्न योजनाएं लागू की जा रही है। लेकिन प्रसव पीड़ा के वक्त उन्हें घर से अस्पताल पहुंचाने के लिए आज भी राज्य के कई ऐसे गांव हैं जहां सड़क की सुविधा नहीं है। जिसकी वजह से प्रसव पीड़ा के वक्त गर्भवती महिलाओं के भार के सहारे अस्पताल पहुंचाया जाता है। जिसका एक जीता-जागता उदाहरण गंजाम जिले के पात्रपुर ब्लॉक के बादुआ गांव से मिला है। जहां मार्ग नहीं रहने की वजह से प्रसव पीड़ा के वक्त गर्भवती महिला को 15 किमी तक टोकरी से अस्पताल पहुंचाया गया।
जानकारी के मुताबिक बादुआ गांव के रवीन्द्र नायक की पत्नी हीरामणि को शनिवार को प्रसव पीड़ा होने लगी। उसी वक्त उसने एक शिशु पुत्र को जन्म दिया। लेकिन बच्चा आधा अधूरे प्रसव में रूक गया। इसे देखते ही हीरामणि को ग्रामीणों ने अस्पताल लेकर जाने का सोचा। लेकिन गांव में सड़क नहीं होने की वजह से यहां एंबुलेंस या फिर अन्य गाड़ियों का आना असंभव था। जिसके बाद ग्रामीणों ने एक बड़े टोकरी में उसे आदकर करीब 15 किमी तक का रास्ता पैदल चलकर गए। फिर वहां से एक सरकारी गाड़ी में उसे पात्रपुर के सामुदयिक स्वास्थ्य केन्द्र में पहुंचाया गया। लेकिन उसकी हालत ज्यादा नाजूक होने की वजह से डॉक्टरों ने उसे ब्रह्मपुर अस्पताल रेफर कर दिया।
यह केवल एक ही घटना नहीं है। राज्य के कई ऐसे गांव में जहां आज भी अच्छे सड़के और रास्ते नहीं है। जहां आप्तकाल के वक्त इस तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है।