पश्चिम बंगाल ने आलू बीज उत्पादन में आत्मनिर्भरता की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम उठाया है। हुगली जिले के हरिपाल में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान राज्य के कृषि विपणन मंत्री बेचाराम मन्ना ने किसानों को टिश्यू कल्चर लैब में टेस्ट ट्यूब के माध्यम से तैयार किए गए आलू के पौधे सौंपे। इस पहल का उद्देश्य बाहरी राज्यों पर आलू बीज की निर्भरता समाप्त करना और स्थानीय स्तर पर उच्च गुणवत्ता वाले बीजों का उत्पादन बढ़ाना है। मंत्री मन्ना ने बताया कि राज्य सरकार का लक्ष्य वर्ष 2030 तक आलू बीज उत्पादन में पूर्ण आत्मनिर्भरता हासिल करना है। वर्तमान में पश्चिम बंगाल हर साल लगभग तीन लाख करोड़ रुपये आलू बीज खरीदने में खर्च करता है। इसे ध्यान में रखते हुए सरकार ने “एपिकल रूटेड कटिंग (ए.आर.सी.)” तकनीक अपनाई है। इस नवीन तकनीक के तहत टिश्यू कल्चर की मदद से आलू के पौधे तैयार किए जा रहे हैं, जो देश में पहली बार सरकारी स्तर पर किया जा रहा है। इस तकनीक से भंडारण लागत में कमी आएगी और आलू उत्पादन की कुल लागत 30 से 40 प्रतिशत तक घटने की उम्मीद है। इससे किसानों को सीधा आर्थिक लाभ मिलेगा।
परियोजना में एक अग्रणी अनुसंधान संस्था को जोड़ा गया है और अब तक 115 फार्मर्स प्रोड्यूसर कंपनियां (एफपीसी) इस योजना से जुड़ चुकी हैं। हर वर्ष चरणबद्ध तरीके से उत्पादन बढ़ाने की योजना है। मंत्री ने कहा कि आने वाले समय में राज्य को पंजाब से आलू बीज आयात पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। इस अवसर पर दस हजार पौधे वितरित किए गए, जिससे लगभग छह हजार किसान लाभान्वित होंगे। कार्यक्रम में उपस्थित शोधकर्ता हिमाद्रि शेखर दास ने बताया कि इस प्रयास से न केवल राज्य आत्मनिर्भर बनेगा बल्कि हर साल बाहर जाने वाले करोड़ों रुपये भी राज्य के भीतर ही रहेंगे। कृषि वैज्ञानिकों के निरंतर सहयोग से यह परियोजना देश में आलू बीज उत्पादन के क्षेत्र में एक नई दिशा स्थापित करेगी।