भारत की आर्थिक प्रगति के अनुरूप होना चाहिए समावेशन और न्याय

  • Oct 19, 2025
Khabar East:Indias-economic-progress-must-be-matched-by-inclusion-and-justice
भुवनेश्वर, 19 अक्टूबर:

जैसे-जैसे भारत एक अग्रणी वैश्विक आर्थिक शक्ति बनने की दिशा में निरंतर आगे बढ़ रहा है, गरीबी, जातीय भेदभाव और लैंगिक असमानता जैसी चुनौतियां अब भी यह संकेत देती हैं कि लोकतंत्र की नींव को मजबूत करने के लिए सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है। यह बात राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) की सदस्य विजय भारती सयनी ने शुक्रवार को कही।

उन्होंने कहा कि भारत तेजी से तकनीकी प्रगति और आर्थिक परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है। फिर भी इस उल्लेखनीय प्रगति के साथ-साथ हमें उन सामाजिक यथार्थों की याद दिलाई जाती है, जो समावेशिता और न्याय के प्रति नए सिरे से प्रतिबद्धता की मांग करते हैं। सयनी शिक्षा अनुसंधान  डीम्ड विश्वविद्यालय में विद्यार्थियों और शिक्षकों को संबोधित कर रही थीं।

 विश्व बैंक की अक्टूबर 2025 की रिपोर्ट का हवाला देते हुए उन्होंने बताया कि लगभग 34.2 करोड़ भारतीय, यानी लगभग 23.8 प्रतिशत आबादी, प्रतिदिन 4.20 अमेरिकी डॉलर की आय पर जीवनयापन कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में गरीबी की दर अधिक है। ये तीनों राज्य भारत के लगभग 46 प्रतिशत गरीबों का प्रतिनिधित्व करते हैं। पिछले 15 वर्षों में सरकार ने गरीबी उन्मूलन के लिए कई प्रयास किए हैं, फिर भी वंचितता अब भी एक व्यापक छाया बनी हुई है।

 कानूनी अधिकारों और वास्तविक जीवन की परिस्थितियों के बीच की खाई पर जोर देते हुए सयनी ने कहा कि न्याय तक सुलभ और समान पहुंच सुनिश्चित करना आवश्यक है, ताकि कोई भी नागरिक आर्थिक तंगी के कारण न्याय पाने से वंचित न रह जाए।

 उन्होंने इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2025 का हवाला देते हुए कहा कि न्याय तक पहुंच को मजबूत करना जरूरी है ताकि कोई भी व्यक्ति आर्थिक कठिनाई के कारण अपनी स्वतंत्रता से वंचित न हो। उन्होंने कहा कि कानूनी सहायता को सशक्त बनाना और समय पर जमानत सुनिश्चित करना जेलों में भीड़ को कम करने में मदद कर सकता है, खासकर उत्तर प्रदेश, बिहार और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में।

वंचितों को समान कानूनी अवसर प्रदान करना संविधान में वर्णित कानून के समक्ष समानता के वादे को पूरा करने के लिए अत्यंत आवश्यक है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो. प्रदीप्त कुमार नंद, कुलपति ने की। इस अवसर पर प्रो. (डा.) नीता मोहंती, प्रो-वाइस चांसलर और प्रो. ज्योति रंजन दास, डीन (छात्र कल्याण) ने भी संबोधित किया।

 सयनी ने बताया कि मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के तहत स्थापित राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग हाशिए पर रहने वाले लोगों के लिए न्याय और गरिमा का एक महत्वपूर्ण संरक्षक है। उन्होंने कहा कि एनएचआरसी केवल एक नौकरशाही संस्था नहीं है, बल्कि यह गरीबों और वंचितों के लिए जीवनरेखा बन गई है।

 पिछले 32 वर्षों में एनएचआरसी ने 23.79 लाख से अधिक मामलों की सुनवाई की है, जिनमें से 2,981 मामलों को स्वतः संज्ञान में लिया गया था। आयोग ने 8,924 मामलों में 263 करोड़ रुपये की मौद्रिक राहत प्रदान की है।

सयानी ने अपने संबोधन का समापन करते हुए कहा कि ये आंकड़े न केवल हमारे कार्य की व्यापकता को दर्शाते हैं, बल्कि प्रत्येक नागरिक के अधिकारों और गरिमा की रक्षा के प्रति हमारी अटूट प्रतिबद्धता को भी प्रदर्शित करते हैं

Author Image

Khabar East

  • Tags: