सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के लिए चुनाव आयोग के निर्देश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर गुरुवार को विचार करने पर सहमति जताई है। बिहार में इस साल के अंत में चुनाव होने हैं। वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और ए।एम। सिंघवी ने न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ के समक्ष याचिकाओं का उल्लेख किया। वरिष्ठ अधिवक्ता ने मामले पर तत्काल सुनवाई की मांग की। वकील ने तर्क दिया कि जो मतदाता निर्दिष्ट दस्तावेजों के साथ फॉर्म जमा करने में विफल रहेंगे, उन्हें मतदाता सूची से हटाए जाने का परिणाम भुगतना पड़ेगा, भले ही उन्होंने पिछले बीस वर्षों से चुनावों में मतदान किया हो। पीठ को बताया गया कि 8 करोड़ मतदाता हैं और 4 करोड़ की गणना करनी है। सिब्बल ने पीठ से मामले में नोटिस जारी करने का आग्रह किया। संक्षिप्त दलीलें सुनने के बाद पीठ ने गुरुवार को याचिकाओं की जांच करने पर सहमति जताई। बिहार में मतदाता सूचियों की एसआईआर कराने के चुनाव आयोग के फैसले को चुनौती देने वाली अब तक चार याचिकाएं दायर की गई हैं। और ये याचिकाएं एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स, कार्यकर्ता योगेंद्र यादव, लोकसभा सांसद महुआ मोइत्रा और आरजेडी सांसद मनोज झा द्वारा दायर की गई हैं।
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है कि यह कदम संविधान के अनुच्छेद 14, 19, 21, 325 और 326 के साथ-साथ जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और मतदाता पंजीकरण नियम, 1960 के नियम 21ए का उल्लंघन है। झा ने अधिवक्ता फौजिया शकील के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर चुनाव आयोग के उस आदेश को चुनौती दी है। इसमें बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण का निर्देश दिया गया है। झा की याचिका में कहा गया है कि चुनाव आयोग के 24 जून के आदेश को संविधान के अनुच्छेद 14, 21, 325 और 326 का उल्लंघन मानते हुए रद्द किया जाना चाहिए। झा ने कहा कि विवादित आदेश संस्थागत रूप से मताधिकार से वंचित करने का एक उपकरण है। इसका उपयोग मतदाता सूचियों के आक्रामक और अपारदर्शी संशोधनों को सही ठहराने के लिए किया जा रहा है जो असंगत रूप से मुस्लिम, दलित और गरीब प्रवासी समुदायों को लक्षित करते हैं। इस प्रकार ये रैंडम पैटर्न नहीं हैं बल्कि यह जानबूझकर की गई कार्रवाई है।