बांस की नली और पारंपरिक उपकरणों की मदद से खगोलीय पिंडों के बीच की दूरी मापने वाले महान भारतीय खगोलशास्त्री, गणितज्ञ और विद्वान महामहोपाध्याय चंद्रशेखर सिंह सामंत (पठानी सामंत) की अद्वितीय वैज्ञानिक उपलब्धियों को सोमवार को यहां सोआ डीम्ड टू बी यूनिवर्सिटी में उनकी 190वीं जयंती के अवसर पर रेखांकित किया गया।
कार्यक्रम में वक्ताओं ने बताया कि मात्र 14 वर्ष की आयु में ही सामंत ने आकाश का अध्ययन करना शुरू कर दिया था और बांस व लकड़ी से बने उपकरणों की सहायता से दिनभर छाया की लंबाई मापकर दूरी, ऊंचाई और समय का आकलन किया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि, भुवनेश्वर स्थित पठानी सामंत प्लैनेटोरियम के पूर्व निदेशक डॉ. शुभेंदु पटनायक ने कहा कि वर्तमान में पठानी सामंत की जयंती अलग-अलग तिथियों पर मनाई जा रही है, जो उचित नहीं है। उन्होंने कहा कि पठानी सामंत की जयंती 13 दिसंबर को सार्वभौमिक रूप से मनाई जानी चाहिए।
डॉ. पटनायक ने कहा कि पठानी सामंत ने दस वर्षों तक ग्रहों का अध्ययन करने के बाद चंद्र पंचांग में त्रुटियों की पहचान की और अपने निष्कर्षों को अपने खगोलीय ग्रंथ ‘सिद्धांत दर्पण’ में दर्ज किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए सोआ के कुलपति प्रो. प्रदीप्त कुमार नंद ने कहा कि औपचारिक शिक्षा न होने के बावजूद पठानी सामंत को उनके पिता ने संस्कृत, गणित और खगोलशास्त्र की शिक्षा दी थी। कभी किसी विश्वविद्यालय में पढ़ाई नहीं की, फिर भी असाधारण उपलब्धियां हासिल कीं।
प्रो. नंद ने प्रसिद्ध सैद्धांतिक भौतिक विज्ञानी और ब्रह्मांड विज्ञानी स्टीफन हॉकिंग का उदाहरण देते हुए कहा कि शारीरिक सीमाओं के बावजूद भी महानता हासिल की जा सकती है।
इस अवसर पर प्रो. मंजुला दास (नियंत्रक परीक्षा, एसओए) और प्रो. आयसा कांत महंती (डीन, इंस्टीट्यूट ऑफ बिजनेस एंड कंप्यूटर स्टडीज, प्रबंधन विज्ञान संकाय, एसओए) ने भी छात्रों को संबोधित किया। कार्यक्रम का संचालन प्रो. ज्योति रंजन दास, डीन (छात्र कल्याण) ने किया।
चूंकि पठानी सामंत खंडपड़ा के राजपरिवार से थे, इसलिए परिवार के वंशज और पूर्व विधायक सिद्धार्थ शेखर सिंह मर्दराज ने दो वर्ष पूर्व एसओए के सहयोग से खंडपड़ा में उनकी जयंती का आयोजन किया था। इस अवसर पर पढ़े गए अपने संदेश में श्री मर्दराज ने खगोलशास्त्र को बढ़ावा देने और पठानी सामंत की उपलब्धियों को उजागर करने के लिए विश्वविद्यालय का आभार व्यक्त किया।
सोआ द्वारा संचालित इंडियन नॉलेज सिस्टम (IKS) सेंटर के प्रमुख और यूनिवर्सिटी आउटरीच प्रोग्राम के निदेशक प्रो. नचिकेता के. शर्मा ने पठानी सामंत के उपकरणों, जिन्हें ‘ज्योतिरयंत्र’ कहा जाता है, के लघु मॉडल प्रदर्शित किए। उन्होंने बताया कि इन उपकरणों के प्रोटोटाइप अब राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता का केंद्र बन चुके हैं।
प्रो. शर्मा ने पछानी सामंत द्वारा विकसित उपकरणों—‘मानयंत्र’, ‘धनुरयंत्र’, ‘शंकु’, ‘वर्टिकल सनडायल’, ‘हॉरिजॉन्टल सनडायल’, ‘इक्वेटोरियल सनडायल’ और ‘पोलर सनडायल’—के विकास की भी जानकारी दी, जिनकी मदद से समय, दूरी और दिशा का निर्धारण किया जाता था। उन्होंने बताया कि इन उपकरणों का विकास एसओए के IKS सेंटर में किया जा रहा है और स्कूलों व कॉलेजों में इस विषय पर कार्यशालाएं आयोजित की जा रही हैं। हाल ही में उन्होंने आईआईटी इंदौर में शिक्षकों के लिए दो दिवसीय कार्यशाला भी आयोजित की थी।