स्टाइपेंड देने संबंधी याचिका पर कलकत्ता हाईकोर्ट में फैसला सुरक्षित

  • Jun 14, 2025
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कोलकाता,14 जूनः

कलकत्ता हाईकोर्ट ने उस याचिका पर सुनवाई पूरी कर ली जिसमें पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा बर्खास्त किए गए समूह-सी और समूह-डी श्रेणी के गैर-शिक्षकीय कर्मचारियों को मासिक स्टाइपेंड देने के फैसले को चुनौती दी गई थी। न्यायमूर्ति अमृता सिन्हा की एकल पीठ ने दोनों पक्षों की अंतिम दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। राज्य सरकार के अधिवक्ता ने अपनी अंतिम दलील में यह सवाल उठाया कि याचिकाकर्ताओं को उन कर्मचारियों को स्टाइपेंड मिलने से क्या आपत्ति है, जिन्होंने अपनी नौकरी गंवाई है। वहीं, याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि चूंकि यह स्टाइपेंड सरकारी खजाने से दिया जा रहा है, जो जनता के पैसों से बनता है, इसलिए किसी भी नागरिक को यह जानने का अधिकार है कि सरकार सार्वजनिक धन का उपयोग कैसे कर रही है।इससे पहले नौ जून को हुई पिछली सुनवाई में न्यायमूर्ति सिन्हा ने यह सवाल उठाया था कि समूह-सी और समूह-डी के लिए स्टाइपेंड की जो राशि तय की गई है, उसका आधार क्या है। उन्होंने यह भी पूछा कि क्या अतीत में राज्य सरकार ने कभी किसी बर्खास्त कर्मचारी को इस तरह की आर्थिक सहायता दी है। साथ ही उन्होंने यह भी पूछा कि जिन कर्मचारियों को यह सहायता दी जा रही है, उनसे बदले में सरकार को क्या लाभ मिलेगा।

 गौरतलब है कि बीते महीने पश्चिम बंगाल सरकार ने पश्चिम बंगाल जीविकोपार्जन और विशेष सुरक्षा अंतरिम योजनाके तहत इस स्टाइपेंड की घोषणा की थी। इस योजना के अनुसार, नौकरी गंवाने वाले समूह-सी कर्मचारियों को 25 हजार और समूह-डी कर्मचारियों को 20 हजार रुपये प्रति माह दिए जाएंगे।मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने योजना की घोषणा करते हुए कहा था कि कुछ लोगों की जनहित याचिका दायर करने की प्रवृत्ति के चलते सरकार को यह कदम उठाना पड़ा है। हालांकि, इस योजना के खिलाफ अब तक तीन याचिकाएं कलकत्ता हाईकोर्ट में दाखिल हो चुकी हैं, जिससे सरकार की कानूनी विवाद से बचने की मंशा पूरी नहीं हो सकी। उल्लेखनीय है कि तीन अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट के उस फैसले को बरकरार रखा था जिसमें पश्चिम बंगाल स्कूल सेवा आयोग के माध्यम से की गई 25 हजार 753 स्कूल नियुक्तियों को रद्द कर दिया गया था।

  कोर्ट ने कहा था कि पैनल में योग्यऔर अयोग्यउम्मीदवारों के बीच अंतर न कर पाने के कारण पूरी सूची को रद्द करना पड़ा। राज्य सरकार और डबल्यूबीएसएससी इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिकाएं दाखिल कर चुकी हैं।

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