भारत में 5.3 लाख से अधिक लोगों की जान लेने वाले कोविड-19 वायरस से निपटने में एंटीबायोटिक्स ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई है, जिसे एक तरह की राष्ट्रीय सुरक्षा के रूप में देखा जाना चाहिए। इस क्षेत्र में विकास विकास लिए बड़े पैमाने पर समाज के सहयोग की आवश्यकता है। यह बातें चेन्नई स्थित बीएस अब्दुर रहमान क्रिसेंट इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के प्रो-वाइस चांसलर प्रोफेसर एन ताजुद्दीन ने सोमवार को शिक्षा 'ओ' अनुसंधान (सोआ) में 'औद्योगिक और समुद्री जैव प्रौद्योगिकी में अनुसंधान और नवाचार: एक परिपत्र अर्थव्यवस्था' पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कही।
पर्यावरण प्रदूषण और कुपोषण दुनिया के लिए बड़ी समस्या बनकर उभरे हैं, इस ओर इशारा करते हुए प्रोफेसर ताजुद्दीन ने कहा कि इन समस्याओं को कम करने में जैव प्रौद्योगिकी की बड़ी भूमिका है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (डीएसटी-एसईआरबी) द्वारा प्रायोजित इस सेमिनार का आयोजन सोआ के औद्योगिक जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान केंद्र (सीआईबीआर) द्वारा राष्ट्रीय अनुसंधान विकास निगम (एनआरडीसी) और भारतीय जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान सोसायटी (बीआरएसआई), तिरुवनंतपुरम के सहयोग से किया जा रहा है। इस अवसर पर सीआईबीआर के निदेशक प्रोफेसर हृदयनाथ थाटोई ने कहा कि वर्तमान परिदृश्य में सेमिनार का विषय बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि औद्योगिक और समुद्री जैव प्रौद्योगिकी संसाधनों की कमी, पर्यावरणीय गिरावट और जलवायु परिवर्तन जैसी समकालीन वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए तैयार हैं।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए ओडिशा कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (ओयूएटी) के कुलपति प्रो. प्रभात कुमार राउल ने कहा कि जैव प्रौद्योगिकी वह साधन है जो कृषि के विकास में सहायक हो सकता है। जैव प्रौद्योगिकी प्रौद्योगिकी का भविष्य है। जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में 6000 स्टार्टअप, 760 कंपनियां और 800 उत्पाद हैं। सत्र की अध्यक्षता कर रहे सोआ के कुलपति प्रो. प्रदीप्त कुमार नंद ने कहा कि सौआ जैव प्रौद्योगिकी पर ध्यान केंद्रित कर रहा है और अगले साल नवंबर में इस विषय पर एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित करने की प्रक्रिया में है। उन्होंने कहा कि सोआ अनुसंधान पर बहुत जोर दे रहा है और अब तक सीआईबीआर सहित 19 अनुसंधान केंद्र स्थापित कर चुका है।
कार्यक्रम को यूजीसी-डीएई सीएसआर, कोलकाता केंद्र की वैज्ञानिक डॉ. अनिंदिता चक्रवर्ती ने भी संबोधित किया। उन्होंने कहा कि जैव प्रौद्योगिकी के बिना विज्ञान का कोई अस्तित्व नहीं है। डॉ. सिबानी महापात्र और डॉ. अमृता बनर्जी ने भी कार्यक्रम को संबोधित किया। डॉ. सस्मिता मोहंती ने कार्यक्रम का संचालन किया।