ओडिशा बुधवार को श्रद्धा और उल्लास से झूम उठा जब राज्यभर में लाखों श्रद्धालुओं ने कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर पारंपरिक ‘बोइत बंदाण’ उत्सव मनाया। यह पर्व राज्य की प्राचीन समुद्री विरासत की स्मृति में मनाया जाता है।
सुबह-सुबह से ही श्रद्धालु नदियों, तालाबों और जलाशयों के किनारे उमड़ पड़े। उन्होंने केले के पत्तों, कागज और थर्मोकोल से बनी छोटी-छोटी नावें जल में प्रवाहित कीं, जिन्हें दीपक, फूलों और अगरबत्तियों से सजाया गया था। यह अनुष्ठान प्राचीन काल के कलिंग व्यापारी नाविकों (साधवों की स्मृति में किया जाता है, जो कभी मसाले, वस्त्र, रेशम और हस्तशिल्प लेकर बाली, जावा, सुमात्रा, बर्मा (म्यांमार) और श्रीलंका जैसे दूर देशों तक व्यापार करने जाया करते थे। श्रद्धालुओं ने पारंपरिक मंत्रोच्चार के साथ पूजा-अर्चना की-“आ का मा बोइ, पान गुआ थोइ, पान गुआ तोर, मासक धरम मोर, बोइत बंदाण हो!” इन मंत्रों के बीच लोगों ने समृद्धि, सौभाग्य और सुरक्षित यात्रा की कामना की।
भुवनेश्वर के पुराना शहर स्थित बिंदुसारोवर तालाब के किनारे परिवारों ने पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ पूजा संपन्न की। वहीं कटक के गड़गडिया घाट (महानदी) और देवी घाट (कठजोड़ नदी) पर भारी भीड़ उमड़ी, जहां श्रद्धालुओं ने बोइत बंदाण मनाते हुए सात दिन चलने वाले ‘बालियात्रा मेले’ का स्वागत किया — जो ओडिशा के समुद्री व्यापार इतिहास को प्रदर्शित करता है।
पुरी समुद्र तट पर भी हजारों लोग मंगलवार रात से ही जुटने लगे थे ताकि समुद्र में छोटी नावें प्रवाहित कर सकें। इसी प्रकार दया और कुआखाई नदियों के तटों पर भी पारंपरिक गीत, संगीत और भक्ति के स्वर गूंज उठे। यह पर्व न केवल ओडिशा के दक्षिण–पूर्व एशिया से ऐतिहासिक संबंधों का प्रतीक है, बल्कि समृद्धि और आध्यात्मिक कल्याण की प्रार्थना का अवसर भी प्रदान करता है।
बोइत बंदाण आज भी ओडिशा के सबसे महत्वपूर्ण सांस्कृतिक उत्सवों में से एक है, जो आधुनिक पीढ़ियों को राज्य के समुद्री इतिहास और गौरवशाली विरासत से जोड़ता है।