ओडिशा हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस सिबो शंकर मिश्रा ने कहा कि कानून और साहित्य दो अलग-अलग विषय हैं, लेकिन दोनों के बीच एक अटूट संबंध है। कानून वह माध्यम है जो मानव आचरण और व्यवहार को नियंत्रित करता है, जबकि साहित्य उस मानव व्यवहार को अभिव्यक्ति देता है, जो स्वयं कानून का प्रतिबिंब है। जस्टिस मिश्रा शनिवार को यहां स्थित शिक्षा‘ओ’ अनुसंधान (सोआ) डीम्ड टू बी यूनिवर्सिटी के विद्यार्थियों और प्राध्यापकों को संबोधित कर रहे थे।
जस्टिस मिश्रा सोआ लेक्चर सीरीज़ के तहत आयोजित कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित थे।
उन्होंने कहा कि साहित्य प्रायः लेखन, कहानी, चित्रकला और नाट्य रूपांतरण के माध्यम से अभिव्यक्त होता है और कानून भी साहित्य में पाया जा सकता है, जैसे साहित्य में कानून का प्रतिबिंब मिलता है।
प्रसिद्ध उपन्यासकार फकीर मोहन सेनापति की प्रसिद्ध कृति ‘छः मन आठगुंठ’ का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि लेखक ने इस उपन्यास के माध्यम से यह उजागर किया कि औपनिवेशिक काल के भूमि कानूनों का किस प्रकार दुरुपयोग किया जा रहा था। सेनापति की कहानी में कानून का ही प्रतिनिधित्व किया गया है।
जस्टिस मिश्रा ने प्रसिद्ध उपन्यासकार डॉ. प्रतिभा राय की चर्चित कृति ‘यज्ञसेनी’ का भी उल्लेख किया, जिसमें समाज में पितृसत्तात्मक कानूनों के अधीन महिलाओं के दमन को रेखांकित किया गया है। उन्होंने कहा कि शेक्सपियर की 'मर्चेंट्स ऑफ वेनिस' में समाज में अन्याय और पूर्वाग्रहों की झलक मिलती है, जबकि महाभारत में ‘धर्म’ और ‘अधर्म’ के बीच के संघर्ष का चित्रण किया गया है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता सोआ के कुलपति प्रो. प्रदीप्त कुमार नंद ने की। वक्ता का परिचय सोआ नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ लॉ (SNIL) के वरिष्ठ प्राध्यापक प्रो. प्रभीर पात्रनायक ने कराया, जबकि छात्र कल्याण अधिष्ठाता प्रो. ज्योति रंजन दास ने कार्यक्रम का संचालन किया।
रामायण का उल्लेख करते हुए जस्टिस मिश्रा ने कहा कि सीता हरण एक व्यक्ति के आचरणिक विकार और अवैध कृत्य को दर्शाता है। रावण को उसे लौटाने के लिए कहा गया था, लेकिन उसने इंकार किया और अंततः उसे दंडस्वरूप मारा गया।
जस्टिस मिश्रा ने पुरानी हिंदी फिल्मों जैसे ‘श्री 420’, ‘आवारा’ और ‘कानून’ का भी उदाहरण दिया और कहा कि इन फिल्मों के माध्यम से समाज को कानून की शिक्षा देने का प्रयास किया गया।
उन्होंने प्रसिद्ध फिल्म ‘अंधा कानून’ का उदाहरण देते हुए कहा कि इस फिल्म ने यह संदेश दिया कि किसी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए दो बार दंडित नहीं किया जा सकता। इसी तरह ‘नो वन किल्ड जेसिका’ फिल्म में कानून की बारीकियों और तकनीकी पहलुओं को उजागर किया गया है।
फिल्म ‘दामिनी’ के मशहूर संवाद “तारीख पे तारीख” का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि यह संवाद न्याय प्रणाली में विलंबित न्याय की वास्तविकता को उजागर करता है।