प्रतिष्ठित हिन्दी ब्लॉकबस्टर ‘शोले’ का पुनर्स्थापित (रेस्टोर्ड) संस्करण, जिसमें इसका मूल अंत शामिल होगा, जल्द ही भारत भर के सिनेमाघरों में रिलीज़ किया जाएगा। यह जानकारी प्रख्यात कवि, गीतकार और पटकथा लेखक जावेद अख्तर ने दी है।
अख्तर, जिनकी इस फिल्म के निर्माण में चरित्र निर्माण से लेकर कथा-विकास और संवाद लेखन तक महत्वपूर्ण भूमिका रही, ने बताया कि फिल्म के मूल क्लाइमेक्स को बदलना पड़ा था क्योंकि 1975 में सेंसर बोर्ड ने एक पूर्व पुलिस अधिकारी द्वारा कानून अपने हाथ में लेकर अपराधी की हत्या करने पर आपत्ति जताई थी, जबकि निर्देशक रमेश सिप्पी ने मूल रूप से यही अंत तय किया था।
फिल्म में दिखाए गए संशोधित संस्करण में पुलिस अधिकारी ठाकुर बलदेव सिंह (संजय कुमार) का गब्बर सिंह (अमजद खान) से सामना होता है और गब्बर को कानून प्रवर्तन एजेंसियां गिरफ्तार कर लेती हैं।
लेकिन पुनर्स्थापित संस्करण में कहानी के मूल स्वरूप के अनुसार, ठाकुर बलदेव सिंह गब्बर सिंह की हत्या करते दिखेंगे—जैसा कि दर्शकों ने कभी नहीं देखा। यह संस्करण फिल्म की रिलीज़ के 50 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में फिर से लॉन्च किया जा रहा है।
जावेद अख्तर, जिन्हें इस वर्ष के पहले सोआ साहित्य सम्मान से सम्मानित किया गया, तीसीरे सोआ साहित्य महोत्सव में उद्घाटन के बाद अभिनेत्री और निर्माता वाणी त्रिपाठी टिक्कू से बातचीत कर रहे थे।
भारतीय सिनेमा के विकास पर प्रश्नों का उत्तर देते हुए उन्होंने कहा, “सिनेमा बीमारी नहीं, बल्कि लक्षण है। यह सिर्फ यह दिखाता है कि समाज किस समस्या से गुजर रहा है। समय के साथ सिनेमा समाज के साथ बदलता रहा है। उन्होंने कहा कि आज ‘देवदास’ जैसी फिल्म नहीं बनाई जा सकती। अगर बनाई भी जाए, तो चलेगी नहीं।
उन्होंने बताया कि एक समय ऐसा था जब बॉलीवुड फिल्मों का विषय ‘बगावत’ और उसके बाद ‘एंग्री यंग मैन’ का दौर था—जो जेपी आंदोलन और समानांतर राजनीतिक प्रवृत्तियों के उभार के समय सामने आया। “लेकिन ऐसा 1950 के दशक में संभव नहीं था।
अख्तर ने कहा कि जब तक ज़मींदारी प्रथा थी, तब तक फिल्मों में ‘ठाकुर’ और ‘जमींदार’ खलनायक हुआ करते थे। “अब ज़मींदारी नहीं है, इसलिए आज फिल्मों में खलनायक भी नहीं दिखाई देते।
उन्होंने साहित्य से दूर होने पर चिंता जताते हुए कहा, “हमने पिछले 40–45 वर्षों से साहित्य को लगभग छोड़ दिया है। आज अगर कोई अपनी मातृभाषा में बात करे, तो लोग समझते हैं कि वह साधारण पृष्ठभूमि से आता है। 20वीं सदी के बड़े साहित्यकारों के नाम भी आज की पीढ़ी को शायद पता नहीं होंगे। अंग्रेजी सीखना ज़रूरी है, लेकिन मातृभाषा की कीमत पर नहीं।
सिनेमा और संगीत पर कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के प्रभाव पर पूछे गए सवाल पर उन्होंने कहा कि वह गायक शंकर महादेवन के साथ 200 से अधिक गीत कर चुके हैं, जिसमें प्रसिद्ध ‘ब्रेथलेस’ भी शामिल है। क्या AI आज मेरे शब्दों और महादेवन की आवाज़ में ब्रेथलेस बना सकता है? नहीं,” उन्होंने कहा, लेकिन अभी AI शैशवावस्था में है, भविष्य में क्या करेगा, कहना मुश्किल है।
अख्तर ने 1994 की फिल्म ‘1942: ए लव स्टोरी’ के अपने मशहूर गीत ‘एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा’ के निर्माण की यादें भी साझा कीं।
उन्होंने बताया कि संगीतकार आर. डी. बर्मन के मुंबई स्थित स्टूडियो में फिल्म पर एक बैठक हो रही थी, जहां उन्होंने गीत की गुंजाइश का सुझाव दिया, लेकिन अन्य लोग सहमत नहीं थे।
उन्हें अगले बैठक के लिए गीत लिखकर लाने को कहा गया था, लेकिन वह उसे पूरी तरह भूल गए।
“जब स्टूडियो की ओर जा रहा था, तब सोच रहा था कि गीत न लिख पाने की बात कैसे बताऊंगा। तभी मेरे मन में पहली पंक्ति ‘एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा’ आई।
उन्होंने यह पंक्ति बैठक में साझा की, जो सभी को पसंद आई, और वहीं बैठकर पूरा गीत लिख दिया—जो आगे चलकर सुपरहिट साबित हुआ।