नुआपड़ा में ओडिशा के राजनीतिक दिग्गजों की परीक्षा की घड़ी

  • Oct 21, 2025
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भुवनेश्वर, 21 अक्टूबर:

नुआपड़ा में होने वाला आगामी उपचुनाव अब महज़ एक सामान्य राजनीतिक मुकाबला नहीं रहा। यह ओडिशा की तीन प्रमुख पार्टियों बीजू जनता दल (बीजेडी), भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और कांग्रेस के लिए एक निर्णायक परीक्षा बन गया है। बदलती निष्ठाओं, बगावत और रणनीतिक फेरबदल के बीच यह पश्चिमी ओडिशा की सीट अब सत्ता संतुलन का केंद्र बन चुकी है।

 एक समय बीजेडी का अभेद किला माने जाने वाला नुआपड़ा अब पार्टी के भीतर गहराते असंतोष को दर्शा रहा है। बरगढ़ जिले से बाहरी उम्मीदवार स्नेहांगिनी छुरिया को टिकट दिए जाने से स्थानीय कार्यकर्ताओं में नाराज़गी बढ़ गई है। नतीजतन, 50 से अधिक सरपंच, पंचायत सदस्य और जमीनी कार्यकर्ता बीजेपी में शामिल हो गए, साथ ही बीजेडी के वरिष्ठ नेता और कभी कलाहांडी से लोकसभा प्रत्याशी रहे लंबोधर निआल ने भी पार्टी छोड़ दी।

 दो दशकों तक बीजेडी नवीन पटनायक के करिश्मे, अनुशासन और संगठनात्मक एकता पर टिकी रही, लेकिन 2024 के बाद उसकी अजेय छवि में दरारें पड़ने लगीं। दिलचस्प रूप से, वही दल-बदल और विभाजन की रणनीति, जिसने बीजेडी को उभार दिया था, अब उसी के खिलाफ इस्तेमाल की जा रही है।

वहीं, बीजेपी, मौके को भांपते हुए, बेहद रणनीतिक तरीके से कदम बढ़ा रही है। उसका सबसे बड़ा दांव तब सफल हुआ जब जय ढोलकिया  पूर्व बीजेडी विधायक राजेंद्र ढोलकिया के बेटे  ने पार्टी ज्वॉइन कर ली। इस कदम ने न केवल बीजेडी को अस्थिर कर दिया बल्कि बीजेपी को भावनात्मक और प्रतीकात्मक बढ़त भी दिलाई। स्थानीय नेताओं को जोड़कर और आक्रामक जमीनी अभियान शुरू कर बीजेपी ने स्पष्ट संकेत दे दिया है कि वह किसी भी कीमत पर नुआपड़ा सीट जीतना चाहती है।

 शुरुआत में बीजेडी ने अपनी रणनीति को स्थानीय रखने की कोशिश की। प्रसन्न आचार्य की अध्यक्षता में जिला स्तरीय समितियां बनाईं और क्षेत्रीय नेताओं को अलग रखा। लेकिन बाद में वरिष्ठ प्रचारकों की तैनाती से पार्टी की अंतर्राष्ट्रीय बेचैनी उजागर हो गई।

 स्नेहांगिनी छुरिया के लिए यह चुनाव बेहद कठिन है। 2024 में लगभग 29,000 वोटों से मिली हार और नुआपड़ा से 160 किलोमीटर दूर निवास उनकी सबसे बड़ी चुनौती बन गई है। स्थानीय लोगों के बीच यह सवाल आम है  क्या नुआपड़ा में कोई नेता नहीं है?”

 उधर, कांग्रेस इस बार पीसीसी अध्यक्ष भक्तचरण दास के नेतृत्व में पिछली बारों से अधिक संगठित दिखाई दे रही है। घासीराम माझी, जिन्होंने 2024 में निर्दलीय बागी के रूप में 50,000 से अधिक वोट हासिल किए थे, अब दोबारा पार्टी में लौट आए हैं, जिससे कांग्रेस को विरोधी मतों के एकीकरण की उम्मीद है।

 नवीन पटनायक और मुख्यमंत्री मोहन माझी- दोनों के लिए यह चुनाव राजनीतिक भविष्य की कसौटी साबित हो सकता है।

 यदि बीजेडी हारती है तो कांटाबांजी और हिंजिली में हुए झटकों के बाद नवीन की घटती छवि को और आघात पहुंचेगा। वहीं अगर बीजेपी जीतती है, तो यह माझी की बढ़ती नेतृत्व क्षमता को मजबूत करेगा और उन्हें ओडिशा की राजनीति का नया शक्ति केंद्र बना सकता है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नुआपड़ा उपचुनाव सिर्फ एक स्थानीय मुकाबला नहीं है- यह नेतृत्व, निष्ठा और विरासत पर जनमत है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि यह चुनाव नवीन पटनायक का संजीवनी साबित होता है या मोहन माझी के लिए विजय का क्षण।

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