पिछले 6 मई को खाली हुए बिहार विधान परिषद के कार्यकारी सभापति की सीट पर सीएम नीतीश कुमार ने अवधेश नारायण सिंह को इस पद पर बिठाकर इसे भर दिया है। 1993 से गया स्नातक निर्वाचन क्षेत्र से एम एल सी रहने वाले सिंह 2012 से 2017 तक इस पद पर आसन भी रहे। लेकिन 2018 में अपने बेटों की करतूत के चलते सुर्खियो में आये सिंह के बारे में कहा जा रहा था कि सीएम नीतीश उनसे नाराज चल रहे है। शायद यही वजह रही कि पिछले एक महीने से ज्यादा वक्त तक उच्च सदन के आसन की यह कुर्सी खाली रही। लेकिन पिछले सप्ताह राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने जिस तरह से नीतीश को बहस की चुनौती दी और उन्हें तेजस्वी के लिये कुर्सी खाली करने की सलाह दी उसी समय यह आभास हो गया था कि बिहार की राजनीति के चाणक्य नीतीश अपने पुराने मित्र जगदानंद सिंह को माकूल जबाव देगें और उन्होनें दे भी दिया। दरअसल राजद के वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह और सीएम नीतीश कुमार कभी दोस्त हुआ करते थे। खासकर जब दोनों एम एल ए फ्लैट में रहते थे तो एक ही रिक्शा से साथ - साथ ही विधान सभा आते भी थे। लेकिन लालू से अलग होने के बाद नीतीश और जगदानंद सिंह की राहें अलग रही लेकिन भाषायी मर्यादा का पालन दोनो ने ही किया। ठीक विधान सभा चुनाव से पहले पहली बार राजद में सवर्ण को प्रदेश अध्यक्ष का पद जगदानंद को दिया गया और यह कयास लगाये जा रहे थे कि जद यू से नाराज राजपूत जाति को अपनी ओर लाने की कवायद राजद ने शुरू की है। लेकिन राज्य सभा चुनाव में हरिवंश को और बिहार विधान परिषद का कार्यकारी सभापति अवधेश नारायण सिंह को बनाकर नीतीश ने राजद के मंसूबो पर पानी फेरने की कोशिश की है।