पश्चिम बंगाल में इस बार दुर्गा पूजा को दिव्यांगजनों और वरिष्ठ नागरिकों के लिए अधिक सुलभ और समावेशी बनाने के लिए यूनेस्को और पश्चिम बंगाल सरकार ने मिलकर नई मानक संचालन प्रक्रियाएं (एसओपी) जारी की हैं। इन एसओपी में रैंप, ब्रेल साइनेज, व्हीलचेयर-सुलभ शौचालय, स्पर्शनीय मार्गदर्शक ब्लॉक, और स्पष्ट रूप से चिह्नित आपातकालीन निकासी मार्ग जैसी अनिवार्य न्यूनतम आवश्यकताओं को शामिल किया गया है। इसके अलावा, दिव्यांगजनों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए ऑडिट और निगरानी में दिव्यांग संगठनों को शामिल करने का भी प्रावधान है।
यूनेस्को और संयुक्त राष्ट्र निवासी समन्वयक कार्यालय ने मिलकर पंडालों में दिव्यांगजनों की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए नई मानक संचालन प्रक्रियाएं जारी की हैं। पंडालों में रैंप के साथ सीढ़ी-रहित प्रवेश द्वार, व्हीलचेयर-सुलभ शौचालय, और वरिष्ठ नागरिकों व दिव्यांगों के लिए आर्मरेस्ट वाली बैठने की जगहें (विश्राम क्षेत्र) होनी चाहिए। दिव्यांग व्यक्तियों के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देशों और सूचना के लिए स्पर्शनीय मार्गदर्शक ब्लॉकों के साथ-साथ ब्रेल साइनेज का उपयोग किया जाएगा। पंडालों पर सुरक्षा और सहायता के लिए प्रशिक्षित स्वयंसेवकों की सहायता डेस्क स्थापित की जाएगी।
इंडिया ऑटिज्म सेंटर के सहयोग से इस बार ऑटिस्टिक व्यक्तियों सहित दिव्यांगजनों के लिए भीड़-भाड़ से पहले 24 प्रसिद्ध पंडालों का विशेष पूर्वावलोकन कराया जाएगा। नए एसओपी के तहत, ऑडिट, निगरानी और फीडबैक में दिव्यांगजन संगठनों को भी शामिल किया जाएगा ताकि उनकी आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके।
यह पहल यूनेस्को और पश्चिम बंगाल सरकार की साझेदारी में आईआईटी-खड़गपुर के सहयोग से की गई है। इन पहलों का उद्देश्य दुर्गा पूजा के भव्य उत्सव को वरिष्ठ नागरिकों और दिव्यांग व्यक्तियों के लिए अधिक समावेशी और सुलभ बनाना है, ताकि सभी लोग त्योहार का समान रूप से आनंद ले सकें।