प्रख्यात संथाली लेखिका पद्मश्री दमयंती बेसरा ने कहा कि यदि लोग आदिवासी संस्कृति और परंपराओं का अनुसरण करें तो समाज में व्याप्त कई अव्यवस्थाओं का समाधान संभव है। आदिवासियों में दहेज प्रथा नहीं होती और महिलाओं के प्रति गहरा सम्मान होता है। वह यहां सोआ के तीसरे साहित्य महोत्सव के दूसरे दिन को संबोधित कर रही थीं।
उन्होंने कहा कि आदिवासी भगवान जगन्नाथ की उपासना करते हैं, जिन्हें पूरे राज्य में श्रद्धा से पूजा जाता है और ओडिशा की संस्कृति मूलत: आदिवासी जीवन शैली का ही अनुसरण करती है।
आदिवासी समुदाय भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और उनकी बहन सुभद्रा—इन तीनों की उपासना करते हैं। यह परंपरा राज्य के संताल, कोंध और साबरा समुदायों में भी प्रचलित है। हालांकि, उन्होंने 64 आदिवासी भाषाओं के संवर्धन पर बल देते हुए कहा कि आदिवासी बच्चे अपनी मातृभाषा सीखने में सक्षम नहीं हो पा रहे हैं।
ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी जो पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के बावजूद व्यस्तता के कारण साहित्य महोत्सव के दूसरे दिन शामिल नहीं हो सके, ने सोआ डीम्ड यूनिवर्सिटी को इस आयोजन के लिए बधाई दी। सीएम माझी ने अपने संदेश में कहा कि साहित्य संस्कृति को सुदृढ़ करने और राष्ट्र की पहचान निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस दिशा में साहित्यकारों की भी समान जिम्मेदारी होती है।
महोत्सव की थीम—‘संस्कृति, सृजनशीलता और कृत्रिम बुद्धिमत्ता’—को समयोचित बताते हुए उन्होंने आयोजन में शामिल साहित्यकारों को शुभकामनाएं दीं।
इस वर्ष आरंभ किए गए सोआ युवा साहित्य पुरस्कार को युवा लेखक सूर्यस्नात त्रिपाठी को उनकी कहानी-संग्रह ‘थिया पछि नारंग’ के लिए प्रदान किया गया।
सोआ की उपाध्यक्ष सास्वती दास ने त्रिपाठी को पुरस्कार प्रदान किया, जिसमें एक रजत पट्टिका, प्रशस्ति-पत्र, अंगवस्त्र और एक लाख रुपये की नकद राशि शामिल थी।
अपने स्वीकृति भाषण में त्रिपाठी ने कहा कि हमें ईर्ष्या, अहंकार और आत्म-संतुष्टि के चक्र से बाहर निकलने की आवश्यकता है। साहित्य और शिक्षा समाज को मुक्त कर सकते हैं।
कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) पर टिप्पणी करते हुए, जो इस दो दिवसीय साहित्य महोत्सव के प्रमुख चर्चा विषयों में से एक था, उन्होंने कहा कि हम मनुष्य हैं और हमारे पास हृदय और भावनाएं हैं, इसलिए AI हमसे आगे नहीं निकल सकता।
सभा को संबोधित करते हुए सास्वती दास ने कहा कि कोई भी समाज साहित्य और संस्कृति की अनदेखी कर प्रगति नहीं कर सकता। युवा पीढ़ी में साहित्य के प्रति घटती रुचि को देखते हुए ऐसे आयोजनों की आवश्यकता और भी बढ़ जाती है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता सोआ के प्रो-वाइस चांसलर प्रो. प्रशांत कुमार पात्र ने की। इस अवसर पर PPRACHIN की प्रमुख और महोत्सव निदेशक प्रो. गायत्रीबाला पंडा तथा डीन (छात्र कल्याण) और कार्यक्रम के मुख्य संयोजक प्रो. ज्योति रंजन दास ने भी संबोधित किया।