पश्चिम बंगाल में चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के दौरान सामने आए आंकड़ों ने चुनावी प्रक्रिया को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। 16 दिसंबर को जारी ड्राफ्ट मतदाता सूची में नए मतदाताओं के नाम जोड़ने के लिए आए आवेदनों की संख्या, पिछली सूची से हटाए गए मतदाताओं के मुकाबले बेहद कम है। मुख्य निर्वाचन अधिकारी कार्यालय से जुड़े सूत्रों के मुताबिक, पहले चरण में नए मतदाताओं के पंजीकरण के लिए कुल तीन लाख 24 हजार 800 आवेदन मिले हैं। इसके मुकाबले अक्टूबर 2025 की पिछली मतदाता सूची से 58 लाख 20 हजार 899 नाम हटाए गए हैं। यह अंतर काफी बड़ा माना जा रहा है।सूत्रों का कहना है कि नए पंजीकरण के आवेदन उन 30 लाख 59 हजार 273 अनमैप्ड मतदाताओं की संख्या के सामने भी नगण्य हैं, जिनका 2002 की मतदाता सूची से कोई सीधा संबंध नहीं पाया गया है। वर्ष 2002 में ही राज्य में आखिरी बार इस तरह का विशेष गहन पुनरीक्षण हुआ था। इन मतदाताओं का नाम न तो स्व-मैपिंग से और न ही संतान-मैपिंग से जुड़ पाया है। नए पंजीकरण के लिए भरे गए फॉर्म-6 में 18 साल की उम्र पूरी कर चुके नए मतदाता शामिल हैं, साथ ही वे लोग भी हैं जिन्होंने अपना मतदाता क्षेत्र बदलने के लिए आवेदन किया है।
हालांकि, मुख्य निर्वाचन अधिकारी कार्यालय के अधिकारियों का मानना है कि आने वाले दिनों में यह संख्या बढ़ सकती है, क्योंकि फॉर्म-6 जमा करने के लिए अभी पर्याप्त समय बचा हुआ है। बताया गया है कि अंतिम मतदाता सूची 14 फरवरी को जारी की जाएगी। इसी के साथ चार नवंबर से शुरू हुआ विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान समाप्त होगा। इसके बाद निर्वाचन आयोग राज्य में होने वाले अहम विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा करेगा।
इस बीच निर्वाचन आयोग ने साफ कर दिया है कि ड्राफ्ट सूची में नाम का होना, चाहे वह स्व-मैपिंग या संतान-मैपिंग के जरिए ही क्यों न दर्ज हुआ हो, अंतिम सूची में नाम बने रहने की गारंटी नहीं है। आयोग ने इस पुनरीक्षण के दौरान 1.60 करोड़ मतदाताओं के मामलों में परिवार से जुड़े अजीब और संदिग्ध आंकड़े पाए हैं।