सोआ में ‘सतत कृषि विकास’ पर तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन

  • Jul 18, 2024
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भुवनेश्वर, 18 जुलाई:

जलवायु परिवर्तन की चुनौती और इसके प्रभाव से निपटने के लिए छोटे-छोटे प्रयास बदलाव की ओर ले जा सकते हैं। जलवायु परिवर्तन की पृष्ठभूमि में सतत कृषि विकास पर गुरुवार को शिक्षा अनुसंधान डीम्ड टू बी यूनिवर्सिटी (सोआ) में तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आगाज हुआ। महाराष्ट्र के सूखाग्रस्त अहमदनगर जिले के हिवरे बाजार पंचायत में जो परिवर्तन हुआ उस बारे में पंचायत के सरपंच पोपटराव बागुजी पवार ने कहा कि उसने शहरों से प्रवासी श्रमिकों को उनके एक बार के निराशाजनक परिदृश्य में वापस ला दिया।  वह आंख खोलने वाला एक मजर है। यहां शिक्षा अनुसंधान डीम्ड टू बी यूनिवर्सिटी (सोआ) में हाइब्रिड मोड पर आयोजित जलवायु स्मार्ट प्रणालियों के साथ सतत कृषि विकासपर सम्मेलन में दुनिया भर के विशेषज्ञ भाग ले रहे हैं।

 सम्मेलन के उद्घाटन समारोह में मुख्य अतिथि रहे ओडिशा के उपमुख्यमंत्री कनक वर्धन सिंहदेव ने कहा कि केवल कृषि ही लोगों को रोजगार प्रदान कर सकती है और रिवर्स माइग्रेशन को संभव बना सकती है। सम्मेलन का आयोजन सोआ के जलवायु स्मार्ट कृषि केंद्र (सीसीएसए) और कृषि विज्ञान संकाय द्वारा भारतीय मौसम विज्ञान सोसायटी के स्थानीय अध्याय के सहयोग से किया गया है। ऊर्जा के अलावा कृषि और किसान सशक्तिकरण विभाग के प्रभारी सिंहदेव ने कहा कि पानी की कमी हो रही है और वैकल्पिक कृषि के बारे में सोचने का समय आ गया है। पद्मश्री से सम्मानित प्रतिष्ठित सामाजिक कार्यकर्ता पवार ने कहा कि उन्होंने अपने ही हिवरे बाजार पंचायत के गांवों के निवासियों को क्षेत्र में जल और मृदा संरक्षण परियोजनाओं को बड़े पैमाने पर शुरू करने के लिए प्रेरित किया और आज किसान प्रति एकड़ 9 लाख रुपये कमा रहे हैं, जो पहले की तुलना में बीस गुना अधिक है। उन्होंने कहा कि हालांकि ग्लोबल वार्मिंग बादल फटने और सूखे जैसी घटनाओं के साथ विभिन्न क्षेत्रों को प्रभावित कर रही है, लेकिन मेरी पंचायत इससे अछूती रही है क्योंकि उचित भूजल प्रबंधन के कारण पानी की कोई कमी नहीं है। पिछले कुछ वर्षों में क्षेत्र में दस लाख पेड़ लगाए गए हैं। इस परिवर्तन के बाद क्षेत्र में किसी भी किसान के आत्महत्या की कोई रिपोर्ट नहीं आई है। नेब्रास्का वाटर सेंटर, नेब्रास्का, यूएसए के निदेशक प्रोफेसर चित्तरंजन रे और ओयूएटी के कुलपति प्रोफेसर प्रभात कुमार राउल ने भी उद्घाटन सत्र को संबोधित किया, जिसकी अध्यक्षता सोआ के कुलपति प्रोफेसर प्रदीप कुमार नंद ने की।

डिप्टी सीएम सिंहदेव ने आगे कहा कि हमें जैविक खाद की ओर लौटना होगा, जो मिट्टी की सेहत को बनाए रखती है और उसे बेहतर बनाती है। राज्य में चल रहे ताप विद्युत संयंत्रों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि इनसे उत्पन्न ऊर्जा में जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल होता है, जो पर्यावरण को प्रदूषित करता है, जबकि कोयला खदानों से निकलने वाले अतिरिक्त ईंधन से कृषि भूमि भर जाती है। सिंहदेव ने कहा कि सरकार ने केंद्र सरकार की सूर्य घर योजना को लागू करने की योजना बनाई है, जिसके तहत किसानों को 300 यूनिट बिजली मुफ्त दी जाएगी।

  प्रो. राउल ने कहा कि किसानों को इस स्थिति से निपटने में मदद करने के लिए एक प्रभावी प्रणाली विकसित करने की आवश्यकता है। प्रो. नंद ने कहा कि सोआ ने जलवायु परिवर्तन को अपने समकालीन शोध क्षेत्रों में से एक के रूप में लिया है और सीसीएसए विश्वविद्यालय द्वारा स्थापित 20 शोध केंद्रों में से एक है। सीसीएसए के निदेशक प्रो. रवींद्र कुमार पंडा ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण कृषि क्षेत्र पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ा है, क्योंकि यहां नियमित रूप से सूखा, लू और अचानक सूखा पड़ता पारंपरिक फसल प्रणाली को जारी रखते हुए ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने की आवश्यकता है। कृषि विज्ञान संकाय के डीन प्रोफेसर संतोष कुमार राउत ने धन्यवाद ज्ञापन किया।

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