छत्तीसगढ़ के पर्यावरणविद आलोक शुक्ला को अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में ‘गोल्ड मैन एनवायरन्मेंटल पुरस्कार 2024’ (ग्रीन नोबल पुरस्कार) से सम्मानित किया गया है। इस साल यह अवॉर्ड भारत के आलोक शुक्ला सहित दुनियाभर से 7 लोगों को प्रदान किया गया है। ‘ग्रीन नोबेल’ कहे जाने वाले इस पुरस्कार को दुनिया के छह महाद्वीपीय क्षेत्रों के जमीनी स्तर के पर्यावरण नायकों को दिया जाता है। बता दें कि आलोक ‘हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समित’ के संयोजक हैं। उन्होंने हसदेव अरण्य बचाओ आंदोलन में काफी संघर्ष किया है।आलोक शुक्ला के नाम की घोषणा की गई तो लगभग चार हजार लोगों की समवेत तालियों ने उनका स्वागत किया। वहीं मंच से आलोक शुक्ला के हिंदी में भाषण दिए जाने पर बड़ी संख्या में उपस्थित भारतीय लोगों ने खुशी जाहिर की। आलोक शुक्ला ने अपने भाषण में कहा, यह सम्मान मेरा नहीं, बल्कि मध्यभारत के लंग्स कहे जाने वाले, समृद्ध हसदेव जंगल को बचाने के लिए 12 वर्षों से संघर्षरत आदिवासियों और उस आंदोलन से जुड़े प्रत्येक नागरिक का है। उन्होंने कहा, मुझे याद आ रहा है वह दिन जब मैं पहली बार हसदेव अरण्य क्षेत्र में गया। मैंने देखा कि वहां के लोग निराश, हताश थे और भविष्य की चिंता से जूझ रहे थे। उन्हें यह तो पता था कि उनके साथ बड़ा अन्याय होने जा रहा है, लेकिन उससे बचने की ना तो उम्मीद थी और ना ही कोई रास्ता सूझ रहा था। जब हमने जनता को इन समृद्ध जंगलों के विनाश के खिलाफ संगठित करना शुरू किया, तो रास्ता खुद-ब-खुद तैयार होता गया।”
आलोक शुक्ला ने अपनी विरासत को याद करते हुए कहा, “भारतवर्ष में प्रकृति को बचाने और अन्याय के खिलाफ संघर्ष की एक समृद्ध विरासत है। बिरसा मुंडा से लेकर जयपाल सिंह मुंडा तक, तिलका मांझी से लेकर टांट्या भील तक, और गुंडाधूर से लेकर वीर नारायण सिंह तक। भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरु और बाबा साहेब अंबेडकर के अहिंसात्मक संघर्ष की विरासत ने हमें ताकत और ऊर्जा दी। भारत के संविधान और शक्तिशाली लोकतांत्रिक परम्पराओं ने, जल, जंगल और जमीन और उस पर निर्भर आदिवासी जीवन शैली को बचाने का एक मजबूत ढांचा प्रदान किया।”