बाहुड़ा यात्रा के अवसर पर बुधवार को भाई-बहन के साथ महाप्रभु जगन्नाथ श्रीमंदिर पहुंचे। तीनों रथों को श्रीगुंडिचा मंदिर से श्रीमंदिर के सिंह द्वार तक खींचा गया। भगवान बलभद्र का तालध्वज रथ 12वीं शताब्दी के मंदिर के सिंह द्वार तक सबसे पहले पहुंचा। इसके बाद देवी सुभद्रा का दर्पदलन रथ पहुंचा। भगवान जगन्नाथ का नंदीघोष रथ श्रीमंदिर द्वार तक पहुंचने वाला अंतिम रथ था।
गजपति राजा दिव्यसिंह देव द्वारा छेरा पहंरा अनुष्ठान के पूरा होने के तुरंत बाद तीनों रथों को श्रीगुंडिचा मंदिर से एक के बाद एक श्रीमंदिर की ओर खींचा गया।
श्रीजगन्नाथ मंदिर प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा दोपहर करीब 3.30 तालध्वज रथ को श्रीमंदिर की ओर खींचा गया, इसके बाद दर्पदलन रथ और आखिर में नंदीघोष रथ को खींचा गया।
उन्होंने कहा कि देवताओं को उनकी वापसी यात्रा के दौरान मौसी मां मंदिर के पास ग्रांड रोड पर उनके संबंधित रथों पर पोड़पीठा चढ़ाया गया।
इससे पहले दिन में औपचारिक पहंडी बिजे के माध्यम से देवताओं को श्रीगुंडिचा मंदिर से उनके रथों तक ले जाया गया।
पहंडी बिजे सुबह लगभग 8.20 बजे शुरू हुआ जब भगवान सुदर्शन को देवी सुभद्रा के दर्पदलन रथ पर ले जाया गया।
भगवान बलभद्र की पहंडी सुबह करीब 8.50 बजे शुरू हुई और उसके बाद देवी सुभद्रा की पहंडी सुबह करीब 9 बजे शुरू हुई। भगवान जगन्नाथ का पहंडी बिजे सुबह करीब साढ़े नौ बजे शुरू हुआ।
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बाहुड़ा यात्रा देखने के लिए ओडिशा और देश के अन्य स्थानों से हजारों श्रद्धालु पुरी शहर पहुंचे थे। इस दौरान राज्य सरकार और पुरी जिला प्रशासन की तरफ से रथयात्रा के सुचारू संचालन के लिए व्यापक सुरक्षा व्यवस्था की गई थी।