वैश्विक प्रदूषण के मुद्दे से निपटना एक कठिन चुनौती है, क्योंकि पारंपरिक उपचारात्मक तकनीकों को लागत-निषेधक माना जाता है। कई बार, उपचारात्मक प्रक्रिया स्वयं पर्यावरण प्रदूषण का कारण बन जाती हैं।
हालांकि, वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं का मानना है कि पादप-आधारित सफाई पद्धति, फाइटोरेमेडिएशन, पर्यावरण प्रदूषण को बेहतर ढंग से प्रबंधित कर सकती है।
इस विषय पर चार शोधकर्ताओं द्वारा संपादित एक पुस्तक का विमोचन हाल ही में शिक्षा ‘ओ’ अनुसंधान डीम्ड टू बी यूनिवर्सिटी (एसओए) के संस्थापक अध्यक्ष प्रोफेसर (डॉ.) मनोजरंजन नायक ने किया। शोधकर्ताओं में से दो सोआ से हैं।
'फाइटोरेमेडिएशन के माध्यम से पर्यावरण प्रदूषण का सतत प्रबंधन' शीर्षक वाली पुस्तक, उस पद्धति पर केंद्रित है, जिसने विभिन्न प्रकार के खतरनाक प्रदूषकों की सफाई के लिए पारंपरिक उपचारात्मक तकनीकों के एक कुशल, किफायती और पर्यावरण की दृष्टि से टिकाऊ विकल्प के रूप में ध्यान आकर्षित किया है।
डॉ. दत्तात्रेय कर (संपादक), चिकित्सा अनुसंधान विभाग, चिकित्सा विज्ञान संस्थान और सम अस्पताल, सोआ के चिकित्सा विज्ञान संकाय में सहायक प्रोफेसर, डॉ. अनन्या कुआंर, सोआ के जैव प्रौद्योगिकी केंद्र में सहायक प्रोफेसर, डॉ. आलोक प्रसाद दास, रमादेवी महिला विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर और डॉ. मौलिन पी. शाह, शोधकर्ता और वैज्ञानिक लेखक हैं। पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में डॉ. दत्तात्रेय कर और आईएमएस और एसयूएम अस्पताल के डीन प्रो. (डॉ.) संघमित्रा मिश्रा मौजूद थे।